मेरी मैरिज तय होने के समय से हीे मोबाइल पर बात होने लगी थी मेरी इनसे, अच्छे लगे थे मुझे ये, सुलझे हुए से.नेक इंसान । मैं अक्सर इनसे पूछती कि अगर मेरी और आपकी मां में कभी कोई झगड़ा हुआ तो आप किसका साथ देंगे, इनका जवाब होता पता नहीं |बस इस एक बात के अलावा मुझे ये बहुत अच्छे लगने लगे थे।जब मैं पहली बार इस घर में आई थी तो बहुत अजीब सा था सब। मेरे घर में सब कितना घुलमिल कर रहते, कभी कभी तो हम मजाक मजाक में किसी एक को चिढ़ाने के लिए उसकी थाली में रखे खाने को खा जाते और यहां मजाल कि कोई एक कमरे में एक टेबल पर बैठ कर भी खाना खा ले, सब राजाबाबू, सबको अपने अपने कमरे में खाना खाने का शौक।
इनकी माँ से बड़ा डर लगता मुझे। जाने कब टोक दें। मैं कभी भी सुबह सुबह उठने की आदी नहीं थी, पर यहां नियम से जल्दी उठ जाती। एक बार देर से नींद खुली तो देखा कि सासु माँ किचन में नाश्ता बना रही हैं, मेरे प्राण ही सूख गए कि आज तो ये बुढ़िया मेरी जान ले लेगी। पर कुछ कहा नहीं सासु माँ ने, बस पूछा कि तेरे लिए भी सेंक दूँ या नहा कर खाएगी।
मुझे लगा लेट उठने पर व्यंग कर रही है मुझ पर ।सासु माँ का साड़ी पहनने का तरीका बड़ा सलीकेदार था और मुझे साड़ी से चिढ़। पहनने में ही घण्टों लग जाते, फिर पहने-पहने काम करना, अजब हाल था मेरा। हर आधे पौन घण्टे में फिर से सब ठीक करना पड़ता, नहीं तो सासु माँ टोक देती कि तमीज नहीं है क्या, ठीक से पहनो। एक बार तो चिढ़ ही गई, बोली कि जब नहीं पहनना आता तो या तो सीख लो या जो आता है वो पहनो, कार्टून क्यों बन जाती हो। बहुत रोना आया था मुझे, एक तो इतनी मेहनत करो और ऊपर से सुनो भी। मैंने भी ठान लिया कि अब साड़ी जाए चूल्हे में।पति की भी बड़ी खराब आदत थी, घर आते ही पहले अपनी माँ के पास आकर बैठ जाते, और कभी कभी तो घण्टों बैठे रहते। किसे अच्छा लगेगा कि उसका पति उसके पास नहीं अपनी माँ के पास बैठ जाये । ना जाने क्या खुसुर फुसुर करते दोनों। कई बार जब बहाने से उनके सामने आ जाती तो ऐसा लगता जैसे बात बदल दी हो उन्होंने। एक बार ऐसे ही टोह लेने के लिए चाय बिस्कुट लेकर गई तो सासु माँ बोल पड़ी कि बेटा तू इतना क्यों परेशान होती है, कभी चाय कभी पानी, जा आराम कर, या यहीं बैठ जा। उस दिन तो मैं चली आई पर सोचा कि जब खुद ही कह रही हैं तो कल से साथ ही बैठूंगी।
साथ बैठी तो लगा कि ये लोग तो फालतू बातें करते रहते हैं, या मेरे ही सामने ऐसा बन रहे हैं। जब मेरे बेबी होने वाला था तो डरते डरते पूछा था कि बच्चे का क्या नाम रखेंगे माँ, कितना खुश होकर सासु माँ ने जवाब दिया,कान्हाऔर मैं डर गई, पूछ ही नहीं पाई कि अगर बेटी हुई तो
ना जाने क्या क्या सोच सोचकर मैंने वे दिन काटे और जबमेरे बिटिया हुई तो पिछले दस दिन से रामायण पढ़ती माँ की आंख में आँसू देखे थे मैंने। खुशी के थे या दुख के पता नहीं ? पर महीनों तक उसकी मालिश से लेकर कच्छी पोट्टी तक सब काम इतने जतन से करते देखा तोआज इतने सालों बाद मै सोचती हूँ कि मै खुद अपनी सास में माँ को खोजती थी , तो क्या मै खुद बहू की जगह बेटी बन पाई थी।
पता नहीं क्यों हम बहुएँअपनी सास में माँ को खोजती हैं, अगर सास मेरी सासु माँ जैसी होती है तो ईश्वर से प्रार्थना है कि मेरी अपनी माँ अपनी बहू के लिए मेरी सासु माँ जैसी बनें।.एक खुशकिस्मत बहू|