माँ की परछाई और पिता का ख्वाब हो तुम,
काँटों के बिच खिलता हुआ गुलाब हो तुम,
तुम सिर्फ बेटी नहीं अपने माता पिता की जान हो तुम।
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एक बेटी का रिस्ता पिता के लिए बहुत ही खास होता है। पिता अपनी बेटी की हर ख्वाइश पूरी करते है। उसे किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने देते है। आइये मै आपको ऐसे ही एक पिता और बेटी की कहानी सुनाती हु | मुझे बिश्वास है आपको यह कहानी बहुत पसंद आएगी
मिस्टर राजेंद्र शर्मा पिछले 5 सालों से अपने बड़े से मकान में अपनी बेटी के साथ हंसी खुशी रह रहे थे। उनकी उम्र अब 60 को पार कर चुकी थी और बेटी प्रिया अब 28 की होने को थी।
उम्र को ध्यान में रखते हुए बेटी ने उनका सारा कामकाज अपने कंधों पर ले लिया था। प्रिया अपने हर काम में बहुत अच्छी थी। जितने अच्छे से वो अपने पापा, घर और उनके कारोबार का ध्यान रखती थी कोई और शायद ही रख पाता। अगर राजेंद्र जी को कोई बेटा होता तो वह भी नहीं। इन बाप बेटी का रिश्ता बहुत ही प्यारा था। बिना बाबा के प्रिया को नहीं चलता और बिना प्रिया के उसके बाप का किसी काम में मन नहीं लगता।
कभी-कभी ऐसा लगता जैसे राजेंद्र जी प्रिया के बाप नहीं उसके बेटे है!
प्रिया की हरकतें ही कुछ ऐसी थी। बाबा को सुबह जल्दी उठकर जबरदस्ती वाकिंग के लिए भेजना हो या छोटे बच्चों को जैसे दवाइयां पिलाते हैं वैसे ही पापा की दवाईया उन्हें खिलानी हो प्रिया का बर्ताव अपने बाबा के साथ
बिल्कुल वैसे ही था जैसे किसी मां का अपने बच्चे के साथ होता है।
प्रिया के बाबा भी कुछ कम नहीं थे जब-जब प्रिया उन्हें दवाई खाने के लिए देती तो आधी दवाई खाते और आधी छुपा लेते लेकिन प्रिया के नजरों से बच नहीं पाते फिर वह उनके सामने खड़ी होकर सारी दवाई उन्हें जबरदस्ती खिलाती। रात को प्रिया के सोने के बाद चुपके से किचन में जाकर फ्रिज से मिठाई चुराकर खाना , बाबा की ऐसी शरारतें भी प्रिया पकड़ लेती थी।
पकड़े जाने पर बाबा पानी पीने का बहाना करते लेकिन प्रिया उनको समजाती कि मिठाई आपके लिए हानिकारक है। बाबा को याद दिलाती की पिछली बार उनका शुगर लेवल कितना बढ़ गया था।
“अपने ही घर में अब मैं मिठाई भी नही खा सकता” बड़बड़ाते हुए, नाराज होने की एक्टिंग करते हुए बाबा किचन से चले जाते फिर प्रिया उन्हे मनाने के लिए एक मिठाई का टुकड़ा पापा के पास लेकर जाति और फिर वो दोनो उसे आधा आधा बाटकर खाते। दोनों के चेहरे पर बड़ी स्माइल आ जाती। बस ऐसे ही दोनों की जिंदगी हंसी खुशी कट रही थी।
उनका घर बहुत बड़ा था उसमे कई कमरे थे इसलिए उन्होंने सोचा कि एक किराएदार रख लिया जाए। पैसों के लिए नहीं लेकिन प्रिया के ऑफिस जाने के बाद अकेले रह रहे राजेंद्र जी को थोड़ा सा ही सही किसी का साथ मिल जाए इसलिए।
जल्दी ही एक किराएदार फाइनल हो गया। उनका नाम अमर सिंह था। उम्र उनकी 50-51 की होगी। एग्रीमेंट पेपर बनाने के दौरान पहली बार वह राजेंद्र जी और प्रिया से मिले। उन्हें दोनों से मिलकर काफी अच्छा लगा और अब अमर सिंह अपनी बीवी के साथ राजेंद्र जी के घर पर किराएदार के तौर पर रहने लगे।
थोड़े दिन बीते थे लेकिन अमर सिंह राजेंद्र जी से अच्छी तरह घुल मिल गए थे। वह दोनों सुबह-सुबह अब साथ में ही वाकिंग के लिए जाया करते थे। कभी वह अमर सिंह के साथ तो कभी अमर सिंह और उनकी बीवी, प्रिया और राजेंद्र जी के साथ डिनर किया करते।
एक सुबह जॉगिंग के दौरान अमर सिंह ने कहा कि ,”आप और प्रिया अकेले ही रहते हैं, आपको तो काफी कुछ मैनेज करना पड़ता होगा। आप कैसे सब इतने अच्छे से संभाल लेते हैं?”
” अजी मैनेज क्या करना है? मेरी होशियार बेटी के लिए यह कुछ भी नहीं है। प्रिया सब इतने अच्छे से संभाल लेती है कि मुझे किसी बात की कोई चिंता ही नहीं है|” राजेंद्रजी ने मुस्कुराते हुए कहा।
“हां वह तो ठीक है लेकिन जब प्रिया ससुराल चली जाएगी तब आपके लिए यह सब मैनेज करना बड़ा मुश्किल हो जाएगा। आपका कोई बेटा भी तो नहीं है और आप अकेले ही इतने बड़े घर में रहते हैं” अमर सिंह ने अपना विचार बताते हुए कहा।
राजेंद्र जी के चेहरे के हाव-भाव बदल गए। वह अमर सिंह से कुछ कहना चाहते थे लेकिन नहीं कहा और बात बदलने के लिए उनसे पूछा,” खैर वो सब जाने दीजिए आपके कितने बच्चे हैं?”
अमर सिंह ने छाती चौड़ी करते हुए कहा,” मेरे दो बच्चे हैं, दोनों ही लड़के है और दोनों ही अमरीका रहते हैं।”
राजेंद्र जी को लगा जैसे अमर सिंह उन्हे ताना मार रहे हो लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा और वो जोगिंग करके अपने घर लौट आए।
कुछ दिन बीते राजेंद्र जी ने अमर सिंह को अपने साथ खाने के लिए बुलाया क्योंकि अमर सिंह की पत्नी किसी काम से बाहर गई थी और वे अकेले थे।
अमर सिंह, राजेंद्र जी और प्रिया डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खा रहे थे। पहला निवाला खाते हैं अमर सिंह ने खाने की तारीफ करते हुए कहा “प्रिया बेटा तुमने आज खाना बहुत अच्छा बनाया है।”
राजेंद्र जी ने गर्व महसूस करते हुए कहा,” हां मेरी बेटी बहुत अच्छा खाना बनाती है “
अमर सिंह जी बोल पड़े,” यह तो बड़ी अच्छी बात है, उसके ससुराल वाले बड़े खुश रहेंगे।”
प्रिया उनसे कुछ कहना चाहती थी लेकिन राजेंद्र जी ने उसे रोक दिया और बात बदलने के लिए प्रिया से पूछा,” कारोबार कैसा चल रहा है? कोई दिक्कत तो नहीं हो रही।”
प्रिया ने कारोबार की सारी जानकारी और स्थिति अपने पापा को बताई जिसे अमर सिंह भी सुन रहे थे और वह प्रभावित होकर बोले,”वाह प्रिया बेटा! मानना पड़ेगा जिस तरह से तुम सारा कारोबार संभाल रही हो, तुम राजेंद्र जी की बेटी नहीं बेटा हो बेटा!”
अब राजेंद्र जी से ना रहा गया उन्होंने कहां,”पता नहीं क्यों आप सभी लोग बेटी को बेटे के साथ कंपेयर करते हो? ऐसा एक भी काम या एक भी फील्ड बताइए जिसमें बेटियों ने अपना नाम ना बनाया हो।
अरे आसमान में प्लेन उड़ाने से लेकर देश के सर्वोच्च पद पर बैठकर देश चलाने तक बेटियों ने हमेशा अपने आपको साबित किया है लेकिन आप जैसे लोग अभी भी उनकी तुलना बेटों से ही करते रहोगे।
होते होंगे बेटे सबके लिए ज्यादा इंपॉर्टेंट, मेरे लिए तो मेरी बेटी ही सबसे बढ़कर है और मैं यह फक्र से कह सकता हूं जो मेरी इस बेटी ने मेरे लिए किया है। जितना प्यार मुझे दिया है,उतना दुनिया का कोई भी बेटा नहीं दे सकता।
चलिए मैं आपसे ही पूछता हूं आप के दो बेटे हैं ना? बताइए वो साल में आपसे कितनी बार मिलने आते है? अमर सिंह जी दुनिया बदल चुकी है अब आप भी बदल जाइए। बेटी को बेटी ही रहने दीजिए उसे बेटा बनाने की कोशिश मत कीजिए।”
आप जब भी किसी बेटी का सम्मान करेंगे तो एक बेटी की तरह ही करना ऐसा कभी मत कहना की तुम बेटी नहीं बेटा हो।
जरूरी नहीं कि चिरागों से ही रोशन हो जहां,
घर में उजाले के लिए एक बेटी ही काफी है।
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