हमें पानी देकर खुद पसीने से नहाते हैं,
हमारी मुस्कान देखकर अपना हर दर्द भूल जाते हैं,
हमारे सपने हो पूरे इसलिए वो काम पर जाते हैं,
वो इंसान नहीं आम जो पिता कहलाते हैं।
दोस्तों आज मै आपको एक बाप और बेटे की ऐसी कहानी सुनाऊँगी जिसे सुनकर आपकी आंखों में पानी आ जायेगा| तो चलिए फिर सुनते है इस कहानी को मुझे उम्मीद है इस कहानी से आपको एक बहुत स्ट्रांग मैसेज मिलेगा|
एक गांव में एक आदमी रहता था जो बहुत बूढ़ा हो चुका था. जिस वजह से उसे कम दिखाई देता था और वह बहुत कमजोर हो गया था. इसलिए वह अपनी बची खुची जिंदगी अपने बेटे के साथ बिताना चाहता था | इसलिए वह शहर में रह रहे अपने बेटे के घर रहने चला गया.
बेटा एक शहर के छोटे मकान में रहता था. मकान तो उसका छोटा था लेकिन उसके अंदर जो चीजे थी वह महंगी थी. उस मकान में बेटा उसकी पत्नी और अपने एक 5 साल के बच्चे के साथ मिलकर रहता था. बूढ़े पिता के आने से उनके परिवार का एक सदस्य और बढ़ गया.
यह पूरा परिवार रोज सुबह, शाम डाइनिंग टेबल पर साथ में खाना खाया करते थे . बूढ़ा पिता अपनी कमजोरी के चलते हमेशा खाने की कोई न कोई चीजें नीचे गिराता रहता था और कई बार कांच के बर्तन भी टूट जाया करते थे. कुछ दिनों तक तो बहू और बेटे ने यह सब सहन किया लेकिन बाद में वे दोनों बूढ़े की ऐसी हरकतों से चिढ़ने लगे.
एक दिन बेटे ने कहा कि,” ऐसा कब तक चलेगा हमें कुछ करना पड़ेगा.” उसकी पत्नी भी इस बात से सहमत हुई.
अगले दिन बेटा कहीं से एक पुराना मेज लेकर आया और घर के एक कोने में उसे लगा दिया और अपने पिताजी से कहा कि,” आप यहीं पर बैठ कर खाना खा लिया कीजिएगा!” उन्होंने एक लकड़ी का बर्तन भी बनवाया जिसमें वे अपने बूढ़े बाप को खाना देने लगे. अपने कांच के कीमती बर्तन बचाने के लिए अपने बूढ़े बाप को लकड़ी का बर्तन देने में उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती थी !
अब खाने का समय जब जब होता तो बूढ़ा बाप एक कोने में बैठ कर खाता और बाकी का परिवार डाइनिंग टेबल पर खाना खाया करता.डाइनिंग टेबल पर बैठे-बैठे दोनों पति-पत्नी कभी-कभी अपने बूढ़े बात की तरफ देख लिया करते, बूढ़े बाप की आंखों में उन्हें आंसू भी नजर आते मगर उनपर जैसे कोई असर ही नहीं होता . बूढ़े का पोता भी यह नजारा हमेशा देखता और वह अपने में ही खोया रहता.
एक दिन जब पति पत्नी डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खा रहे थे तब उनका बच्चा जमीन पर बैठकर कुछ कर रहा था. उन दोनों ने बच्चे के हाथ में लकड़ी का टुकड़ा देखा लेकिन उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि बच्चा लकड़ी के टुकड़े के साथ क्या कर रहा है?
जब बच्चे के पिता ने उसे पूछा,” कि बेटा आओ खाना खा लो तुम नीचे बैठ कर क्या कर रहे हो?” तब बच्चे ने भोलेपन से कहा “अरे मम्मी पापा मैं आप दोनों के लिए लकड़ी का बर्तन बना रहा हूं ताकि आप लोगों को जब आप बूढ़े हो जाओ तो दिन में खाना दे सकु.”
अपने नादान बेटे द्वारा दी गई यह सहज बात दोनों के दिल में तीर की तरह उतर गई. दोनों एक दूसरे का चेहरा निहारने लगे. बिना कुछ कहे ही दोनों की आंखों में पानी आ गया और उन्हें अपने भविष्य की किताब अपने आपको के सामने खुलती हुई नजर आई. उन्हें समझने में ज्यादा देर नहीं लगी कि अब उन्हें आगे क्या करना पड़ेगा.
अगले दिन कमरे के कोने से वह पुराना मैज हट गया और अब बूढ़ा पिता और बाकी का परिवार साथ में मिलकर फिर से खाना खाने लगे. बूढ़े की कमजोरी की वजह से हो रही गलतियां भी अब किसी को नहीं चिढ़ाती थी!
“A father is the one friend upon whom we can always rely. In the hour of need, when all else fails, we remember him upon whose knees we sat when children, and who soothed our sorrows; and even though he may be unable to assist us, his mere presence serves to comfort and strengthen us.”
—Émile Gaboriau
😇 😇 😇