कहानी- बहू जैसा प्यार; Emotional and Motivational Story

दिल से उसे अपना कर देखो
गले एक बार लगा कर देखो
भूल जाएगी मायका अपना
बहू को एक बार प्यार देके देखो

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हर सास चाहती है कि उसकी बहू उसका आदर करे और हर कोई बहू चाहती है कि उसकी सास उसे अपनी प्यार दे| पर फिर भी कुछ घरों में अक्सर ही सास बहू में झगड़े होते रहते हैं इसको खत्म करने के लिए एक सास को अपनी बहू को बहू जैसे ही रखना होगा और बहु को भी अपने सभी कर्तव्य बहू जैसे निभाने होंगे तभी यह खत्म हो सकता है।

आइये आपको ऐसे ही एक सास बहु की सुन्दर कहानी सुनाती| मुझे उम्मीद है आप लोगो को मेरी यह कहानी पसंद आएगी. और हा , हमें Youtube पे subscribe जरूर करे 🙏 🙏 🙏

”रचना , मैं तुम्हें यह नहीं कहूंगी कि मैं तुम्हें बहू नहीं बेटी ही मानुंगी। बेटी, बेटी होती हैं और बहू, बहू होती हैं! मैं तुम्हें बेटी जैसा प्यार नहीं दुंगी…मैं तुम्हें बहू जैसा प्यार ही दुंगी!!” रह-रह कर होने वाली सास के ये शब्द मेरे दिमाग में हथौडे की तरह वार कर रहे थे।


आज मुझे देखने रोहन के साथ उसके मम्मी-पापा और दीदी-जीजाजी आएं थे। रोहन और मैं दोनों ही इंजीनियर हैं। रोहन की जॉब मुंबई में थी और मेरी बंगलेरु में। रोहन मेरी बुआजी के दूर के रिश्ते में कोई लगते थे। बुआजी -फुफाजी रोहन की और उनके परिवार की तारीफ़ करते थकते नहीं थे।

 

रोहन के मम्मी की तो बुआजी इतनी तारीफ़ कर रही थी…जैसे कि वो खुद इंजीनियर हैं, पति और बेटा दोनों इंजीनियर हैं तो जाहिर हैं कि पैसों की कोई कमी नहीं हैं लेकिन घमंड नाम की कोई चीज उनमें नहीं हैं। लड़ाई-झगड़ा करना तो उन्हें आता ही नहीं। उलट उनकी हमेशा यही कोशिश रहती हैं कि उनकी वजह से किसी का दिल न दुखे। खुद इंजीनियर होने के बावजूद और इतना पैसा होने के बावजूद खाना वे स्वयं बनाती हैं। सिर्फ़ सब्जी आदि काटने के लिए काम वाली की सहायता ले लेती हैं। उनका मानना हैं कि खाना हमने स्वयं ही बनाना चाहिए ताकि घर के सभी सदस्यों को शुद्ध और सात्विक भोजन मिले।

 

इतनी तारीफ़ सुन कर मुझे मन ही मन लग रहा था कि यदि यह संबंध हो जाता हैं तो मैं अपने आप को बहुत खुश नसीब समझुंगी। क्योंकि कहा जाता हैं न पति-पत्नी के गुण नहीं मिले तो चलता हैं लेकिन सास-बहू के गुण मिलना चाहिए तभी वैवाहिक जीवन सुखी रहता हैं। यहीं सोच कर मैं मन ही मन खुश हो रही थी कि मुझे बहुत अच्छी सास मिलने वाली हैं।


लेकिन आज जब उन्होंने बहू जैसा प्यार देने की बात कही तो वो बात किसी के भी समझ में नहीं आ रही थी। आज तक सभी ने यहीं सुना था कि हर सास ऐसा ही कहती हैं, ”तुम मेरी बहू नहीं बेटी हो…मैं तुम्हें बेटी जैसा ही प्यार दुंगी।” लेकिन यहां तो उलटा ही हो रहा हैं।


”बहू जैसा प्यार?” घर में सभी को आशंका हो रही थी कि कहीं वे शादी के बाद फिल्मों वाली ललिता पवार टाइप की सास न बन जाए! यदि ऐसा हुआ तो मेरा क्या होगा? लेकिन सिर्फ़ इस एक बात को नज़रअंदाज़ किया जाए तो बाकी सभी बाते अच्छी होने से घर के सभी सदस्यों को लग रहा था कि ये रिश्ता हो जाना चाहिए और…आखिरकार शादी हो गई।


मेरी शादी तो हो गई लेकिन दिमाग में हर वक्त मम्मी जी के शब्द ”तुम्हें बहू जैसा प्यार दुंगी” गुंजते रहते थे। इसलिए मैं मन ही मन डरी हुई थी। मैं रोहन से इस बारे में बात नहीं कर सकती थी क्योंकि मुझे डर था कि कहीं रोहन यह न समझ बैठे कि शादी होते से ही मैं ने मम्मी जी के ख़िलाफ़ उनके कान भरना शुरू कर दिए। इसलिए मैं ने मन ही मन फैसला लिया था कि मैं अपना हर काम इतना परफेक्शन से करुंगी कि मम्मी जी को शिकायत का मौका ही नहीं मिलेगा। जब शिकायत का मौका ही नहीं मिलेगा तो वे ललिता पवार नहीं बन पायेंगी!

 

इस बात का मेरे उपर इतना असर हुआ कि मैं हर वक्त डरी-डरी सी रहने लगी। रोहन ने भी दो-तीन बार प्रेम से पूछा, ”क्या बात हैं, तुम खुश नहीं दिखती? तुम्हें किसी ने कुछ बोला क्या?” मैं उन्हें क्या बोलती? मैं ने इतना ही कहा, ”नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हैं। नया घर, नया वातावरण…सब कुछ नया होने से शायद मैं अपने आप को एडजस्ट नहीं कर पा रही हूं। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।” मम्मी जी, पापा जी भी मेरा बहुत ख्याल रख रहे थे। हर वक्त बहुत प्यार से पेश आते। लेकिन मेरे मन में जो बहू जैसा प्यार की गांठ बैठ चुकी थी, वो निकल ही नहीं पा रही थी।

 

सब लोग कहते हैं न कि शादी के बाद कुछ दिनों तक तो ससुराल के सभी लोग अच्छे से ही रहते हैं…असलियत तो धीरे-धीरे सामने आती हैं!! अभी तो शुरवात हैं इसलिए ये लोग प्यार जता रहे हैं…धीरे-धीरे…मेरा मन इन्हीं सब आशंकाओं से ग्रस्त रहने लगा। शादी के आठ-दस दिनों बाद की बात हैं। मैं चाय बनाने के लिए दूध के पतीला (तीन लीटर दूध था) में से दूध निकालने लगी तो न जाने कैसे क्या मेरे हाथ से सांडसी बराबर पकड़ी नहीं गई और पतीला हाथ से छूट गया। पूरा की पूरा गरम-गरम दूध नीचे गिर गया।

 

मैं इतनी ज्यादा डर गई कि पूछो मत! कहां तो मैं सोच रही थी कि मैं हर काम पूरी परफेक्शन से करुंगी और कहां ये दूध…उसमें भी खास बात यह थी कि दूधवाला दिन में सिर्फ़ एक बार सुबह ही दूध लाता था। पैकेट के दूध में मिलावट होने से वो घर में नहीं लाते थे। सभी लोग चाय का इंतजार कर रहे थे। पतीला गिरने की आवाज़ सुन कर मम्मी जी ने बाहर से ही आवाज़ लगाई, ”रचना क्या हुआ?” मैं तो इतनी ज्यादा डर गई थी कि मेरे मुंह से आवाज़ ही नहीं निकली। तब मम्मी जी खुद किचन में आयी । मम्मी जी को सामने देख कर मैं डर के मारे कांपने लगी।

 

मुझे लगा कि अब वे ज़रुर ललिता पवार बन जायेगी क्योंकि अब कल सुबह तक किसी को भी चाय नसीब नहीं होने वाली और सभी को चाय पीने की आदत हैं। मम्मी जी ने गिरे हुए दूध की तरफ़ और मेरे तरफ़ देखा और मैं बम फटने का इंतजार करने लगी…बस, अब फटा बम…अब फटा…लेकिन ये क्या बम तो फुसका निकला…मम्मी जी मेरे पास आएं और बोले, ”कोई बात नहीं हैं रचना ! तुम इतनी डर क्यों रहीं हो? तुमने कोई जानबुझ कर थोड़े ही गिराया हैं दूध? हो जाता हैं कभी-कभी! कोई बात नहीं… तुम रिलैक्स हो जाओ।”

”लेकिन मम्मी जी अब चाय कौन से दूध से बनेगी? दूध वाला तो कल आयेगा!”
”मैं अभी पैकेट का दूध बुला लेती हूं।”
”लेकिन आप ही ने कहा था कि अपने यहां पैकेट का दूध नहीं लाते?”


”लाते तो नहीं हैं। लेकिन सभी को चाय का एक तरह का नशा हो गया हैं। तो चाय के बिना तो नहीं रहेंगे। इसलिए इमरजेंसी में एकाध बार चलता हैं पैकेट का दूध। हम लोग ऑफ़िस में चाय पीते हैं न? वहां कौन से दूध का उपयोग किया गया हैं क्या हमें पता चलता हैं? ऑफ़िस में हमारी मजबूरी हैं लेकिन घर में जहां तक संभव हो शरीर के दृष्टिकोन से जो अच्छा रहता हैं वो करना चाहिए इसलिए अपन पैकेट का दूध नहीं लेते। लेकिन एकाध बार में कुछ नहीं होता। रोज-रोज थोड़े ही दूध गिर जाएगा? अब तुम रिलैक्स हो जाओ।”

 

मैं ने मन में सोचा मैं फ़िजूल ही डर रही थी। मम्मी जी तो कितने अच्छे हैं। लेकिन दूसरे ही पल सहेली की बात याद आ गई कि ये सब चोचले शादी के शुरवात में ही होते हैं…आगे-आगे देखना होता हैं क्या…यह बात याद आते ही फ़िर से मन में वहीं डर समा गया। दो-एक बार और इसी तरह की छोटी-छोटी ग़लतियाँ हुई लेकिन तब भी मम्मी जी ने मुझे प्यार से ही समझाया।

 

चार-पांच महीने के बाद की बात हैं। सभी को पालक पनीर की सब्जी बहुत पसंद थी। आज रविवार की सभी की छुट्टी होने पालक पनीर की सब्जी बना ने का तय हुआ। सब लोग खाना खाने बैठे तो जैसे ही इन्होंने पहला कौर मुंह में लिया तो बहुत बुरा मुंह बनाया और एक घूंंट पानी पीकर बोले कि आज सब्जी में नमक डाला हैं कि नमक में सब्जी डाली हैं? आज डबल नमक हैं सब्जी में! मुझे काटो तो खून नहीं। हे भगवान, अब? अब ज़रुर मम्मी जी अपना बहू वाला प्यार दिखायेंगे…कहेंगे कि तेरी मम्मी ने यहीं सिखाया क्या? पढ़-लिख कर नौकरी कर रहीं हैं इसका ये मतलब नहीं कि तुम्हें सब्जी बनाना भी नहीं आना चाहिए! तुम्हारी माँ ने तो कहा था कि मेरी बेटी को सब आता हैं…फ़िर ये क्या हैं? मैं ये सब सोच ही रही थी कि इतने में मम्मी जी ने मुझे जोर से झंझोड़ा।
”रचना , रचना …”
”अं…आ…”
”क्या हुआ? तुम कांप क्यों रहीं हो? रो क्यों रही हो?”
”अं…आ…कुछ नहीं…वो…वो…सब्जी…मम्मी जी, सॉरी, न मालूम आज कैसे क्या नमक डबल हो गया…अब सब लोग खाना कैसे खायेंगे?”

”फुलगोभी की सब्जी, दाल, चटनी और अचार हैं न! खा लेंगे। तू घबरा मत। लेकिन आगे से सब्जी बनाते वक्त थोड़ा ख्याल दिया कर।”

 

दोपहर में जब मैं और मम्मी जी अकेले थे तब वो बोली, ”शादी हुई हैं तभी से मैं देख रही हूं कि तुम फ्री नहीं लग रही हो। ऐसा लगता हैं कि कहीं खोई-खोई सी, डरी-डरी सी लगती हो। क्या बात हैं? यदि तुम मुझे नहीं बताओगी तो हम समस्या का निदान कैसे कर पायेंगे? यहां तुम्हारी मम्मी नहीं हैं। लेकिन मैं तो हूं न? तुम मुझ से अपने मन की हर बात कर सकती हो…!” उनके इतने प्रेम से बोलने पर मैं अपने-आप को रोक नहीं पाई और रोने लगी। उन्होंने मुझे अपने बाहों में भर लिया।
”अब बता क्या बात हैं?”
”मम्मीजी, जब आप मुझे देखने आई थी तो आपने कहा था न कि आप मुझे बेटी जैसा नहीं, बहू जैसा प्यार करेंगी।”
”हां, कहा था…तो?”


”बहू जैसा भी कोई प्यार होता हैं क्या? बहू की छोटी से छोटी गलती पर भी उसे इतना प्रताडित किया जाता हैं कि मानो उससे बहुत बड़ा गुनाह हो गया हो…इसलिए मुझे लगा कि आप मेरी छोटी से छोटी गलती पर भी महाभारत रचेगी। इनको मेरे खिलाफ़ भडकायेगी। इसी सोच के चलते मैं हर वक्त डरते रहती हूं कि मुझ से कोई गलती नहीं होनी चाहिए। मुझ पर नाराज़ होने का आपको कोई मौका नहीं मिलना चाहिए। सच बताउं तो आज तक मुझ से जो भी ग़लतियाँ हुई वो इसी घबराहट के चलते हुई। लेकिन मेरी एक बात समझ में नहीं आई। बहू जैसा प्यार करुंगी ऐसा कहने पर भी आपने आज तक अपना सासुपना नहीं दिखाया और मुझे डांटा भी नहीं। फ़िर आपने ऐसा क्यों कहा था कि आप बहू जैसा प्यार करेंगी?”


”अरे पगली…मुझे नहीं पता था कि तू मेरी साधी सी बात को इतना दिल पर लगा लेगी! एक बात बता। क्या कभी तू ने किसी माँ को अपने बेटी से यह कहते सुना कि वो उसे बहू जैसा प्यार करेगी? नहीं न? जब हम बेटी को बहू जैसा प्यार नहीं करते, तो बहू को बेटी जैसा प्यार क्यों करते हैं? इसका तो यहीं मतलब हुआ न कि हम बेटी को ज्यादा महत्व देते हैं, बेटी को ज्यादा प्यार करते हैं…इसलिए बहू से कहते हैं कि तुझे बेटी बनायेंगे, तुझे बेटी जैसा प्यार देंगे। हम लोग बेटे को ज्यादा महत्व देते हैं इसलिए बेटे को बेटे जैसा ही प्यार देते हैं…कभी भी बेटे से यह नहीं कहते कि तुझे बेटी जैसा प्यार देंगे। यदि हम बेटा और बेटी दोनों को समान समझते हैं, तो बेटी को बेटी जैसा प्यार क्यों नहीं दे सकते? मेरी नजर में जिस तरह बेटी का अपना एक अलग अस्तित्व हैं, उसी तरह बहू का भी अपना एक अलग अस्तित्व हैं। मैं बहू को बेटी से किसी भी मामले में कम नहीं समझती इसलिए मैं ने कहा था कि मैं तुम्हें बेटी जैसा नहीं, बहू जैसा प्यार दुंगी। मुझे क्या पता था कि तू उसका गलत मतलब लगाके वह बात दिल को लगा लेंगी। चल अब आँसू पोंछ, नहीं तो मैं सचमुच में फिल्मों वाली ललिता पवार बन जाउंगी!”

 

उन्होंने यह बात इस अंदाज में कही कि हंसते-हंसते हम दोनों का बुरा हाल हो गया। आज मुझे पता चला कि बहू वाला प्यार भी होता हैं!!!

सास भी कभी बहू थी यह भुलना मत
बहू को हर वक्त तराज़ू में तोल ना मत
हो गिले-शिकवा तो मिल के सुलझाना
घर के रिश्तों को ग़ैरों से खोलना मत

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Storybykahkashan